सरकार की ये कंजूसी, बिहार को करेगी बिमार!

बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई किसी से छुपी नहीं है। अस्पतालों के बाहर लंबी कतारें, जर्जर और निष्क्रिय स्वास्थ्य केंद्र बिहार के लोगों के स्वास्थ्य के प्रति सरकार की उदासीनता की पोल खोल रहे हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि बिहार सरकार प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्च करने में देश में सबसे पीछे है। हमारे पड़ोसी राज्य अपने निवासियों पर हमारी सरकार से बेहतर खर्च करते हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े:-

वर्ष 2025-26 में स्वास्थ्य विभाग के बजट और 2025 में राज्यों में जनगणना निदेशालय की ओर से आबादी के अनुमानित आंकड़े की तुलना करने पर यह सच्चाई सामने आ रही है। इसके मुताबिक बिहार सरकार 2025-26 में हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर लगभग 1500 रुपए खर्च करेगी। बात करें अगर पड़ोसी राज्यों की तो झारखंड में यह 1860 रुपए, यूपी में लगभग दो हजार रुपए और पश्चिम बंगाल में 2100 रुपए है।

स्वास्थ्य ढांचे की भयावह स्थिति:-

i) देश का तीसरा बड़ा राज्य होने के बावजूद भी वर्ष 2019-20 हेल्थ इंडेक्स में बिहार 31.00 स्कोर के साथ 19 बड़े राज्यों में 18वें स्थान पर था।

ii) IPHS द्वारा 2021 में जारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार के केवल 50-60% PHC ही IPHS मानकों (जैसे 4-6 बेड, 24/7 सेवा, आवश्यक उपकरण) को पूरा कर रहे हैं।

iii) सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ डॉक्टरों की लगभग रिक्तियाँ लगभग 70% है और उपकरण भी अपर्याप्त हैं।

iv) बिहार के जिला अस्पतालों में बेड की संख्या प्रति एक लाख आबादी पर सबसे कम है। उदाहरण के लिए, नीति आयोग की 2021 की रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार के जिला अस्पतालों में औसतन 6 बेड प्रति लाख आबादी हैं, जो IPHS के मानकों (20-30 बेड प्रति लाख) से बहुत कम है।

v) CAG की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार जिला अस्पतालों में 52% से 92% तक बिस्तरों की कमी है।

vi) PHC में प्रति 1,000 लोगों पर सिर्फ 0.11 बिस्तर हैं, जबकि WHO के मानक के अनुसार 1 बिस्तर प्रति 1,000 व्यक्ति होने चाहिए।

vii) नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के स्वास्थ्य विभाग में लगभग 49% पद खाली हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मापदंडों के अनुसार, राज्य को 1,24,919 एलोपैथिक डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन केवल 58,144 डॉक्टर ही उपलब्ध हैं। यह भारी कमी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता को प्रभावित करती है।

viii) मार्च 2022 की CAG रिपोर्ट्स बताती हैं कि स्वास्थ्य विभाग के लिए आवंटित बजट का लगभग 30% हिस्सा खर्च नहीं हो पाता। यह संसाधनों के अपर्याप्त प्रबंधन और योजना कार्यान्वयन में कमी को दर्शाता है।

अन्य राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति:-

राजस्थान सरकार ने 2023 में अपने प्रदेशवासियों के लिए राईट टू हेल्थ बिल लाकर सरकारी अस्पतालों में इलाज, और दवा के साथ- साथ जांच भी पूरी तरह से फ्री कर दी है। प्रदेश के किसी भी निवासी को सरकारी हाॅस्पिटल में इलाज करवाने पर कोई खर्च नहीं देना होता है। ये व्यवस्था आयुष्मान कार्ड से अलग है। राजस्थान सरकार ने राइट टू हेल्थ के तहत प्रदेश के कुछ प्राइवेट अस्पतालों को भी शामिल किया है।

निष्कर्ष:-

प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की किल्लत केवल संसाधनों की कमी की वजह से नहीं है, बल्कि यह एक गहरी प्रशासनिक और सामाजिक विफलता और सरकार के उदासीन रवैया का प्रतीक है। यहाँ लोगों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखता है, दूसरी ओर, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले राज्य जैसे केरल और तमिलनाडु की तरफ देखें तो उसकी तुलना में बिहार में योजना और जवाबदेही की कमी साफ दिखती है।
हालांकि, कुछ सुधार के संकेत दिख रहे हैं, जैसे नए मेडिकल कॉलेजों का खुलना और भर्ती की घोषणाएं, लेकिन इनका प्रभाव कछुए की चाल और ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है। बिना सटीक नीति, पारदर्शिता, और जन-जागरूकता के प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था ‘चरमराई’ ही रहेगी। सरकार को चाहिए कि वह स्वास्थ्य को आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण का आधार माने, न कि केवल एक खर्च।

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